रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

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कल्पना रामानी

Tuesday, 3 December 2019

कलम गहो हलधर


रच लो जीवन-गीत, कर्म की
कलम गहो हलधर!

सींचो क्यारी, भाव जगेंगे
बीज डाल दो शब्द उगेंगे
जब आएगी फसल झूमती
सारे सुर, लय-ताल बनेंगे

किलकेगी कविता, तुम केवल 
नींद तजो हलधर!

देख रहे हल राह तुम्हारी
बदरा बुला रहे जलधारी
घर, संसार-सुखों की खातिर
तुम्हें जीतनी है यह पारी

बहुरेंगे दिन, बस थोड़ा सा 
धीर धरो हलधर!

तुम सोए, जग सो जाएगा
जीव प्रलय में खो जाएगा
पूरा गीत करोगे तो ही  
नव इतिहास तुम्हें गाएगा

भव-की भूख तुम्हीं पर निर्भर 
याद रखो हलधर! 

-कल्पना रामानी

1 comment:

Anuradha chauhan said...

बहुत सुंदर रचना

पुनः पधारिए


आप अपना अमूल्य समय देकर मेरे ब्लॉग पर आए यह मेरे लिए हर्षकारक है। मेरी रचना पसंद आने पर अगर आप दो शब्द टिप्पणी स्वरूप लिखेंगे तो अपने सद मित्रों को मन से जुड़ा हुआ महसूस करूँगी और आपकी उपस्थिति का आभास हमेशा मुझे ऊर्जावान बनाए रखेगा।

धन्यवाद सहित

--कल्पना रामानी

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