श्री गणेश हो शुभ कर्मों का
नए वर्ष का हुआ प्रवेश।
काल चक्र कब कहाँ रुका है
गतिमय दिन औ रात।
भूल पुराना बढ़ते जाएँ
नए वक्त के साथ।
बातें सारी खो जाती हैं
रह जाती हैं यादें शेष।
कटुताओं के पृष्ठ फाड़कर
फिर से लिखें किताब।
शब्द शब्द में नवजीवन हो
मानवता की आब।
सत्कर्मों की जुड़े श्रंखला
बन जाए यह साल विशेष।
दृढ़ताओं के बल से तोड़ें
दकियानूस रिवाज
क्षमताओं से नवनिर्मित हो
उन्नत एक समाज।
सुलझा लें उलझे धागों को
गाँठें रह जाएँ ना शेष।
-कल्पना रामानी
No comments:
Post a Comment