रचना चोरों की शामत

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कल्पना रामानी

Friday, 20 June 2014

खुद थामो पतवार बेटियों...


खुद थामो पतवार,

बेटियों, नाव बचानी है।

मझधारे से तार,  

तीर तक लेकर जानी है।   


यह समाज बैठा है तत्पर।

गहराई तक घात लगाकर।

तुम्हें घेरकर चट कर लेगा,

मगरमच्छ ये पूर्ण निगलकर।


हो जाए लाचार,

इस तरह, जुगत भिड़ानी है।


यह सैय्याद कुटिलतम कातिल।

वसन श्वेत, रखता काला दिल।

उग्र रूप वो धरो बेटियों,

झुके तुम्हारे कदमों बुज़दिल।


पत्थर की इस बार,

मिटे जो, रेख पुरानी है।


हों वज़ीर के ध्वस्त इरादे।

कुटिल चाल चल सकें न प्यादे।

इस बिसात का हर चौख़ाना,

एक सुरक्षित कोट बना दे।


निकट न फटके हार,

हरिक यूँ गोट जमानी है।
---------कल्पना रामानी  

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