रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

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कल्पना रामानी

Wednesday 1 October 2014

ज़िक्र त्याग का हुआ जहाँ, माँ!




ज़िक्र त्याग का हुआ जहाँ माँ!
नाम तुम्हारा चलकर
आया।
 
कैसे तुम्हें रचा विधना ने
इतना कोमल इतना स्नेहिल!    
ऊर्जस्वित इस मुख के आगे
पूर्ण चंद्र भी लगता धूमिल।
 
क्षण भंगुर भव-भोग सकल माँ!
सुख अक्षुण्ण तुम्हारा   
जाया।
 
दिया जलाया मंदिर-मंदिर
मान-मनौती की धर बाती।
जहाँ देखती पीर-पाँव तुम  
दुआ माँगने नत हो जाती।
 
क्या-क्या सूत्र नहीं माँ तुमने
संतति पाने को
अपनाया।
 
गुण करते गुणगान तुम्हारा
तुमको लिख कवि होते गर्वित।
कविता खुद को धन्य समझती
माँ जब उसमें होती वर्णित।
 
उपकृत हर उपमान तुम्हीं से
हर उपमा ने तुमको
गाया।
 
चाह यही हर भाव हमारा
तव चरणों में ही अर्पण हो।
मातु! कलेजे के टुकड़ों को
टुकड़ा टुकड़ा हर इक गुण दो।
 
हम भी कुछ लौटाएँ तुमको
जो-जो हमने तुमसे
पाया।

-कल्पना रामानी

3 comments:

Kailash Sharma said...

उपकृत हर उपमान तुम्हीं से
हर उपमा ने तुमको
गाया।
...सच कहा है..माँ अतुलनीय होती है..बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति...

Dr. Rajeev K. Upadhyay said...

बहुत ही भावपूर्ण एवं माँ को समर्पित रचना। स्वयं शून्य

annapurna said...

वाह दीदी

पुनः पधारिए


आप अपना अमूल्य समय देकर मेरे ब्लॉग पर आए यह मेरे लिए हर्षकारक है। मेरी रचना पसंद आने पर अगर आप दो शब्द टिप्पणी स्वरूप लिखेंगे तो अपने सद मित्रों को मन से जुड़ा हुआ महसूस करूँगी और आपकी उपस्थिति का आभास हमेशा मुझे ऊर्जावान बनाए रखेगा।

धन्यवाद सहित

--कल्पना रामानी

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