नए
साल ने कहा नमस्ते
बजी
भुवन में चैन
बाँसुरी।
बना
क्रूर कोहरा हमजोली
जाग
उठा जगती का कण-कण
नवांकुरों
ने पलकें खोलीं
पुष्प-पुष्प
में हुआ परागण
सूरज
आया हँसते-हँसते
बाँटी
भर-भर धूप-
अंजुरी।
पुरवा, द्वार दुआ ले आई
टलीं
बलाएँ क्रूर-काल की
सजल-नयन
कर विदा विगत को
सजी
सवारी नए साल की
बढ़े
खल-कदम भी शुभ रस्ते
छोड़
सनातन वृत्ति
आसुरी।
खेत
और खलिहानों ने फिर
अपने-अपने
काज सँभाले।
करमू-धरमू
नई राह पर
चले
जुटाने पेट निवाले।
मेघ
नेह के रहे बरसते
दिशा-दिशा
में घुली
माधुरी। -कल्पना रामानी
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