रच लो
जीवन-गीत, कर्म की
कलम गहो हलधर!
सींचो क्यारी, भाव जगेंगे
बीज डाल दो
शब्द उगेंगे
जब आएगी फसल
झूमती
सारे सुर, लय-ताल बनेंगे
किलकेगी कविता, तुम केवल
नींद तजो
हलधर!
देख रहे हल
राह तुम्हारी
बदरा बुला रहे
जलधारी
घर, संसार-सुखों की खातिर
तुम्हें जीतनी
है यह पारी
बहुरेंगे दिन, बस थोड़ा सा
धीर धरो हलधर!
तुम सोए, जग सो जाएगा
जीव प्रलय में खो जाएगा
जीव प्रलय में खो जाएगा
पूरा गीत
करोगे तो ही
नव इतिहास
तुम्हें गाएगा
भव-की भूख
तुम्हीं पर निर्भर
याद रखो हलधर! -कल्पना रामानी
1 comment:
बहुत सुंदर रचना
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