अग्नि-बाण बरसे अम्बर
से
पर श्रम जीवन दौड़ रहा है
डटा हुआ है मंगलू मोची
घने पेड़ के छायाघर
में
आए आज शरण में इसकी
ज़ख्मी जूते भर दुपहर
में
अर्द्ध-वसन खुद, लेकिन उनका
तन सीवन से जोड़ रहा है
देख घाट पर धरमू धोबी
ओसारे पर ननकू नाई
गुमटी पर गुरमुख पनवाड़ी
भट्टी पर हलकू
हलवाई
धूप हुई हैरान, किस तरह
पलटू पत्थर तोड़ रहा है
खेत हुए हैं रेत-रेत सब
सूरज ने अर्ज़ी
लौटाई
फरियादें जब रद्द हो
गईं
हर क्यारी जल-जल
मुरझाई
हलक खुश्क है पर हल
लेकर
हरिया गात निचोड़ रहा
है
No comments:
Post a Comment