रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

मेरे बारे में
कल्पना रामानी

Tuesday 10 November 2015

एक दीपक हम जलाएँ


भेद की बातें भुलाकर  
नेह की बाती सजाकर
जीव-जग हित ज्योत्सना का
एक दीपक हम
जलाएँ।

तोड़ सच का कोट, लंका
जोड़ ली है झूठ ने।
हँस रहे पापी अँधेरे
रब लगा है रूठने।

दुर्ग दुष्टों का ढहाकर
जय दिशा में पग बढ़ाकर 
कर्म-साधित कामना का
एक दीपक हम
जलाएँ।

पर्व पर दिखते नहीं अब
फुलझड़ी के कहकहे।
लोलुपों के साथ बेबस
बम-पटाखे रह रहे।

द्वेष दुविधा को जलाकर
प्रेम की बस्ती बसाकर
प्राण-पोषित प्रार्थना का
एक दीपक हम
जलाएँ।

दूर है जिनसे दिवाली
रुष्ट हैं जलते दिये।
नेह-निष्ठा से जुटाएँ 
रोशनी उनके लिए।

मंत्र-मंशा गुनगुनाकर
देवि लक्ष्मी को मनाकर
पुष्प-अर्पित अर्चना का
एक दीपक हम
जलाएँ।  

-कल्पना रामानी 

1 comment:

surenderpal vaidya said...

बहुत सुन्दर और सारगर्भित नवगीत।

पुनः पधारिए


आप अपना अमूल्य समय देकर मेरे ब्लॉग पर आए यह मेरे लिए हर्षकारक है। मेरी रचना पसंद आने पर अगर आप दो शब्द टिप्पणी स्वरूप लिखेंगे तो अपने सद मित्रों को मन से जुड़ा हुआ महसूस करूँगी और आपकी उपस्थिति का आभास हमेशा मुझे ऊर्जावान बनाए रखेगा।

धन्यवाद सहित

--कल्पना रामानी

Followers