रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

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कल्पना रामानी

Wednesday, 13 January 2016

शत-शत वंदन सूर्य तुम्हारा

परिवर्तन का हुआ इशारा
शत-शत वंदन सूर्य!
तुम्हारा।

उतरी ज्यों किरणों की डोली
भरी आस से भू की झोली
गतिय हो चली जीवन धारा
शत-शत वंदन सूर्य!
तुम्हारा।

जोश जगाते हो जन-जन में
होश तुम्हीं से हर आँगन में  
मीठा हो जाता जल खारा
शत-शत वंदन, सूर्य!
तुम्हारा।

कर्म तुम्हारा चलते रहना
धर्म तुम्हारा जलते रहना
तुमसे जीवनमय जग सारा
शत-शत वंदन, सूर्य!
तुम्हारा।

जब संक्रांति मकर में होती
पर्व क्रांति हर घर में होती
तिल-तिल बढ़ता दिन बंजारा
शत-शत वंदन, सूर्य!
तुम्हारा।

-कल्पना रामानी 

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--कल्पना रामानी

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