वर्तमान
पर करके अपने
अहम
दस्तखत
नए
साल ने बीते के
दुख
को दफनाया।
जिन
काँटों को व्यर्थ
समझते रहे
मुकुटधर
और
काट कर गए
फेंकते नित
घूरे पर
आज
उन्होंने एक नया
उद्यान
बसाया।
जिनसे
छिपता था सूरज
हर
भोर चिढ़ाकर
अँधियारों
की एक नई
दीवार
बनाकर
उन
अबलों ने अपने
बल पर दीप
जलाया।
कर्म-कलश
ने हसरत से
खेतों
को सींचा
नव-संकल्प, हथेली ने
मुट्ठी
में भींचा
विजय
फ़लक पर श्रम ने
अपना ध्वज
फहराया।
-कल्पना रामानी
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