रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

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कल्पना रामानी

Tuesday 17 December 2019

विजय फलक पर

वर्तमान पर करके अपने
अहम दस्तखत
नए साल ने बीते के
दुख को दफनाया।

जिन काँटों को व्यर्थ 
समझते रहे मुकुटधर
और काट कर गए 
फेंकते नित घूरे पर

आज उन्होंने एक नया
उद्यान बसाया।

जिनसे छिपता था सूरज
हर भोर चिढ़ाकर
अँधियारों की एक नई
दीवार बनाकर

उन अबलों ने अपने 
बल पर दीप जलाया।

कर्म-कलश ने हसरत से
खेतों को सींचा
नव-संकल्प, हथेली ने
मुट्ठी में भींचा

विजय फ़लक पर श्रम ने 
अपना ध्वज फहराया। 

-कल्पना रामानी

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--कल्पना रामानी

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