जाने कौन दिशा से आए
बादल मेरे द्वार।
सारे जतन किए मौसम के
मन से हूँ तैयार।
भर भंडार अनाज सहेजा
डिब्बों में भर लिया मसाला।
पशुधन रहे न भूखा उनका
समुचित चारा, चना सँभाला।
वस्त्र सुखाने रस्सी बाँधी
छुए न ज्यों बौछार।
आड़े समय साथ दें ऐसी
कुछ सागों को चुना, सुखाया।
कुछ स्थान मुरब्बों ने भी
भरे रसोई घर में पाया।
सबसे आगे आकर जम गए
पापड़, बड़ी, अचार।
सारे गमलों को सरकाकर
कोने में कर लिया सुरक्षित।
और क्यारियों को कर डाला
जल निकास के लिए व्यवस्थित।
कीट न हल्ला बोलें इनपर
ऐसा किया जुगाड़।
बेलों वाली चुनी सब्जियाँ
बीज बो दिये डोरी तानी।
भर मौसम होगी भरपाई
जब आएगी बरखा रानी।
झूल झूलते गीत करेंगे
सावन का सत्कार।
-कल्पना रामानी
4 comments:
बहुत सुंदर गीत बधाई कल्पना जी..
बहुत ही अच्छी कविता, बरसात से पहले एक गृहणी द्वारा की गई तैयारी को साकार कर दिया आपने |
बहुत ही सजीव और सुंदर
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