रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

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कल्पना रामानी

Saturday, 21 July 2012

सावन का सत्कार

 
जाने कौन दिशा से आए
बादल मेरे द्वार।
सारे जतन किए मौसम के
मन से हूँ तैयार।
 
भर भंडार अनाज सहेजा
डिब्बों में भर लिया मसाला।
पशुधन रहे न भूखा उनका
समुचित चारा, चना सँभाला।

वस्त्र सुखाने रस्सी बाँधी
छुए न ज्यों बौछार।
 
आड़े समय साथ दें ऐसी
कुछ सागों को चुना, सुखाया।
कुछ स्थान मुरब्बों ने भी
भरे रसोई घर में पाया।

सबसे आगे आकर जम गए
पापड़, बड़ी, अचार।
 
सारे गमलों को सरकाकर
कोने में कर लिया सुरक्षित। 
और क्यारियों को कर डाला
जल निकास के लिए व्यवस्थित।

कीट न हल्ला बोलें इनपर
ऐसा किया जुगाड़।
 
बेलों वाली चुनी सब्जियाँ
बीज बो दिये डोरी तानी।
भर मौसम होगी भरपाई
जब आएगी बरखा रानी।

झूल झूलते गीत करेंगे
सावन का सत्कार।
-कल्पना रामानी

4 comments:

Unknown said...

बहुत सुंदर गीत बधाई कल्पना जी..

Smt. Mukul Amlas said...
This comment has been removed by the author.
Smt. Mukul Amlas said...

बहुत ही अच्छी कविता, बरसात से पहले एक गृहणी द्वारा की गई तैयारी को साकार कर दिया आपने |

पूर्णिमा वर्मन said...

बहुत ही सजीव और सुंदर

पुनः पधारिए


आप अपना अमूल्य समय देकर मेरे ब्लॉग पर आए यह मेरे लिए हर्षकारक है। मेरी रचना पसंद आने पर अगर आप दो शब्द टिप्पणी स्वरूप लिखेंगे तो अपने सद मित्रों को मन से जुड़ा हुआ महसूस करूँगी और आपकी उपस्थिति का आभास हमेशा मुझे ऊर्जावान बनाए रखेगा।

धन्यवाद सहित

--कल्पना रामानी

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