सुनो स्वदेश प्रेमियों, भुला न दो अतीत को।
बुझे कभी न वो दिया, जला गए शहीद जो।
लिखे अनेक पृष्ठ हैं, जवानियों के रक्त से।
कि पत्थरों पे लेख हैं, खुदे कठोर सत्य से।
मिटी नहीं कहानियाँ, सुभाष की, प्रताप की।
बची हुई निशानियाँ, अनेक इंकलाब की।
कि याद भक्ति भाव से, करो हरेक वीर को।
बुझे कभी न वो दिया, जला गए शहीद जो।
शहीद वे महान थे, ज़मीं पे आसमान थे।
फिरंगियों के काल वो, स्वराज के वितान थे।
लुटाए प्राण हर्ष से, कभी हटे न फर्ज़ से।
हुआ स्वतंत्र देश जब, हुए विमुक्त कर्ज़ से।
कि गूंजते हैं आज भी शहादतों के गीत वो
बुझे कभी न वो दिया, जला गए शहीद जो।
अनेक वर्ष हो चुके, स्वतन्त्रता मिले हुए।
पर अपूर्ण यत्न हैं, तरक्कियों के जो हुए।सुकर्म के सुलेख से, लिखो कथा विकास की।
करो कठोर साधना, सुना रही नई सदी।
बुझे कभी न वो दिया, जला गए शहीद जो।
अनेक वर्ष हो चुके, स्वतन्त्रता मिले हुए।
पर अपूर्ण यत्न हैं, तरक्कियों के जो हुए।सुकर्म के सुलेख से, लिखो कथा विकास की।
करो कठोर साधना, सुना रही नई सदी।
हुई अशेष दासता, न फिर से आए मीत वो।
बुझे कभी न वो दिया, जला गए शहीद जो।मेरे नवगीत संग्रह "हौसलों के पंख" से
----कल्पना रामानी
4 comments:
शहीदों को समर्पित बहुत ही सुन्दर नवगीत रचा है आपने आदरणीया साथ ही साथ एक सन्देश भी दिया है आपने बहुत बहुत बधाई आपको. शहीदों को सत सत नमन
अनेक वर्ष हो चुके, स्वतन्त्रता मिले हुए
अपूर्ण हैं प्रयत्न वे, तरक्कियों के जो हुए ...
अभी तो और भी प्रयत्न करने होने तभी शहीदों कि आत्मा को शान्ति मिलेगी ...
बहुत ही प्रभावी और समसामयिक अभिव्यक्ति...
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