ज्योति-पर्व आया
मनभावन
घर-घर दीप जले।
रजत हुआ रजनी का
आँगन
श्यामल गगन तले।
थमे-थमे दिन पंख
लगाकर
फिर गतिमान हुए।
हाथ बढ़ाकर खुशियों
ने
ऊँचे सोपान छुए।
नष्ट हुआ कष्टों का
क्रंदन
सुख के सूत्र फले।
हुआ अस्तगत तम अनंत
में
गम का मेघ छंटा।
भक्ति-भाव से माँ
लक्ष्मी का
सबने नाम रटा।
देख कतारें कंदीलों की
अँधियारे दहले।
देहरी-द्वार सजाने
आए
तोरण रंगोली।
धन की देवी
सुख-समृद्धि की
भर लाई झोली।
गृह-लक्ष्मी के लब फिर
पावन
मंत्रों को मचले।
ले आई है शुभ
दीवाली
उम्मीदें अनगिन।
लूट रहे हैं लोग
पर्व के
ये प्यारे पल छिन।
नयन नीर भर, लिए नेह मन
अपने मिले
गले।
-कल्पना रामानी
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