रचना चोरों की शामत

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कल्पना रामानी

Thursday, 13 March 2014

आइये होली खेलें

पुनः प्रेम के साथ पाहुना

फागुन लाया।
रंग कलश भर लाल
आइये होली खेलें।

कोयलिया की
कूक छा गई कुंज बनन में।
पायलिया हर
पाँव बंध गई हर आँगन में।
लदी बौर से
डाल, आम्र-तरु की बागन में।
मूक हुए वाचाल
आइये होली खेलें।

फूल-फूल ने
जल में आकर डुबकी मारी।
लाल लाल हुई
फुलबगिया की क्यारी-क्यारी।
लगे फूटने
गुब्बारे, तन गई पिचकारी।
झूमें जन बिन ताल
आइये होली खेलें।

क्या खुमार है
खूब! युवाओं पर मौसम का।
सारा आलम
भाँग घोटने  आकर धमका।
सुर सरगम पर
पग-पग बहका, घुँघरू खनका।
मन भर उड़ा गुलाल
आइये होली खेलें।

- कल्पना रामानी

1 comment:

Neeraj Neer said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति .. .. आपको होली की हार्दिक शुभकामनायें ..

पुनः पधारिए


आप अपना अमूल्य समय देकर मेरे ब्लॉग पर आए यह मेरे लिए हर्षकारक है। मेरी रचना पसंद आने पर अगर आप दो शब्द टिप्पणी स्वरूप लिखेंगे तो अपने सद मित्रों को मन से जुड़ा हुआ महसूस करूँगी और आपकी उपस्थिति का आभास हमेशा मुझे ऊर्जावान बनाए रखेगा।

धन्यवाद सहित

--कल्पना रामानी

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