रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

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कल्पना रामानी

Friday, 14 March 2014

रंग में भीगी हवा


रंग में भीगी हवा
चंचल चतुर इक नार सी
गाने लगी सखि, होरियाँ

ऋतु बसंती, पाश फैला कर खड़ी
फागुन प्रिया
सकल जल-थल, नभचरों को खूब
सम्मोहित किया
भंग में डूबी फिजा ने, खोल दीं मनुहार की
भावों भरी बहु बोरियाँ

मद भरे सागर में सारा जग
लगा है डूबने
भू पे उतरा गगन, हर ज़र्रा
लगा है झूमने
बाँचने बैठे छबीले, गीत छंदों की चुटीली
प्रेम रस की पोथियाँ

दिख रहे कोयल, पपीहे, मोर सब
इक झुंड में
फूल, भँवरे, तितलियाँ, लहरा रहे
रस कुंड में
मादलों पर थाप मंगल, हो रहा धरती पे दंगल
पाँव पायल बाँध लय पर
पग जमातीं गोरियाँ  


-कल्पना रामानी

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