यह घर हमारा रहबर,
इस घर के हम सिकंदर,
यह घर है रहबरों का,
यह घर है दिलबरों का।
बचपन की बाँसुरी है,
यौवन की माधुरी।
बंधन के बाँध इसमें,
स्वाधीन साँस भी।
गम हो खुशी हो चाहे,
हमदम सदा यही।
साथी है सहचरों का,
यह घर है दिलबरों का।
हर दिन की शाम है ये,
हर रात की सहर।
प्यारा सा आशियाना,
सपनों का हमसफर।
हर रस का स्वाद इसमें,
सेहत का राज़ घर,
संगीत सब सुरों का,
यह घर है दिलबरों का।
पुरखों की ये निशानी,
बरसों की दास्ताँ।
इतिहास की कहानी,
संघर्ष का निशां।
कृतिलेख है ये कल का,
है आज का बयाँ।
है द्वार मंदिरों का,
यह घर है दिलबरों का।
----कल्पना रामानी
1 comment:
बहुत ही गहरे और सुन्दर भावो को रचना में सजाया है आपने..
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