जन जन का तन मन हर्षा।
बादल घर को लौट गए हैं
नव हरीतिमा सौंप गए हैं।
धरती का कण कण सिंचित कर
सुख के पौधे रोप गए हैं।
फिर उमंग को जगा गई है
अमृत मय वर्षा।
मन मचला, मौसम लुभा गया।
बागों ज्यों मधुमास आ गया।
कोयल मोर पपीहे की भी
बोली में उल्लास छा गया।
नीलांबर से लगा झाँकने
इन्द्र धनुष सहसा।
खेतों के परिधान बदल गए।
कृषकों के अरमान मचल गए।
झूल झूलती ललनाओं के
कंगन पायल खनक खनक गए।
त्यौहारों के आगत की है
घर घर में चर्चा।
-कल्पना रामानी
1 comment:
बहुत खूबसूरत नवगीत ,कल्पना जी ..बहुत बहुत बधाई ....
डा. रमा द्विवेदी
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