रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

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कल्पना रामानी

Friday 10 August 2012

ज्यों ऋतु बदली जीवन बदला



ज्यों ऋतु बदली, जीवन बदला
जन जन का तन मन हर्षा।
 
बादल घर को लौट गए हैं
नव हरीतिमा सौंप गए हैं।
धरती का कण कण सिंचित कर
सुख के पौधे रोप गए हैं।

फिर उमंग को जगा गई है
अमृत  मय वर्षा।
 
मन मचला, मौसम लुभा गया।
बागों ज्यों मधुमास आ गया।
कोयल मोर पपीहे की भी
बोली में उल्लास छा गया।

नीलांबर से लगा झाँकने
इन्द्र धनुष सहसा।
 
खेतों के परिधान बदल गए।
कृषकों के अरमान मचल गए।
झूल झूलती ललनाओं के
कंगन पायल खनक खनक गए।

त्यौहारों के आगत की है
घर घर में चर्चा।


-कल्पना रामानी

1 comment:

ramadwivedi said...

बहुत खूबसूरत नवगीत ,कल्पना जी ..बहुत बहुत बधाई ....

डा. रमा द्विवेदी

पुनः पधारिए


आप अपना अमूल्य समय देकर मेरे ब्लॉग पर आए यह मेरे लिए हर्षकारक है। मेरी रचना पसंद आने पर अगर आप दो शब्द टिप्पणी स्वरूप लिखेंगे तो अपने सद मित्रों को मन से जुड़ा हुआ महसूस करूँगी और आपकी उपस्थिति का आभास हमेशा मुझे ऊर्जावान बनाए रखेगा।

धन्यवाद सहित

--कल्पना रामानी

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