रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

मेरे बारे में
कल्पना रामानी

Thursday, 20 September 2012

उड़ परिंदे,आ रहा पीछे शिकारी

      

उड़ परिंदे!
रहा पीछे शिकारी। 
 
देख उसके हाथ में वो जाल है।  
पेट है फूला, मगर कंगाल है।
तुम सदा ही तृप्त हो, संतुष्ट हो
भूख से वहशी बड़ा बेहाल है।
 
अरे, चल दे!
पंख नोचेगा भिखारी।   
 
जीव हत्या उस वधिक का लक्ष्य है।
जीव का ही रक्त उसका भक्ष्य है।
आसमाँ तेरा, धनी है तू सदा,
जा वहाँ, जिस छोर पर तू रक्ष्य है।
 
जाग बंदे!  
वरन कटने की है बारी।
 
जाल में दाने बिछाकर वो खड़ा।
मौत की दावत तुझे देने अड़ा
देख लालच में आना भाग ले
धूर्त,पापी, कुटिल है कातिल बड़ा।
 
उस दरिंदे
की सदा खाली पिटारी।  
    
-कल्पना रामानी

1 comment:

ashu said...

पेट है फूला, मगर कंगाल है।

यह रचना उतम है और इसमें दर्शन भी है.सन्देश भी.
पेट है फूला, मगर कंगाल है।
मेरा व्यक्तिगत राय है, पेट है फुला ये बताता है की उसका पेट भरा है फिर भी वो और और भूखा है . अगर यह कहना चाहती है तो यहाँ कंगाल शब्द नहीं होना चाहिय था

पुनः पधारिए


आप अपना अमूल्य समय देकर मेरे ब्लॉग पर आए यह मेरे लिए हर्षकारक है। मेरी रचना पसंद आने पर अगर आप दो शब्द टिप्पणी स्वरूप लिखेंगे तो अपने सद मित्रों को मन से जुड़ा हुआ महसूस करूँगी और आपकी उपस्थिति का आभास हमेशा मुझे ऊर्जावान बनाए रखेगा।

धन्यवाद सहित

--कल्पना रामानी

Followers