रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

मेरे बारे में
कल्पना रामानी

Friday, 10 August 2012

क्यों न हम उत्सव मनाएँ



















खुशनुमा मौसम
लुभाने गया है।
क्यों हम उत्सव मनाएँ।
 
मन के जालेसाफ कर लें।
स्नेह सितसद्भाव भर लें।
कलुष रावण को हराकर,
धवल नूतन साल कर लें।
 
प्रकृति पर नव
रूप,यौवन छा गया है।
क्यों हम उत्सव मनाएँ।
 
दीप आतुर हो रहे हैं।
स्वर्ण लौ से जगमगाएँ।
तम हरें सारे जगत का,
इन्द्र धनुषी रंग छाएँ।
 
हर नया अंदाज़
मन को,भा गया है।
क्यों हम उत्सव मनाएँ।
 
द्वार पर शोभित रंगोली,
और  वंदन  वार होंगे।
धन की देवी को मनाने,
सोलहों  श्रंगार  होंगे।
 
शुभम का संदेश
घर घर गया है,
क्यों हम उत्सव मनाएँ।
---------कल्पना रामानी

No comments:

पुनः पधारिए


आप अपना अमूल्य समय देकर मेरे ब्लॉग पर आए यह मेरे लिए हर्षकारक है। मेरी रचना पसंद आने पर अगर आप दो शब्द टिप्पणी स्वरूप लिखेंगे तो अपने सद मित्रों को मन से जुड़ा हुआ महसूस करूँगी और आपकी उपस्थिति का आभास हमेशा मुझे ऊर्जावान बनाए रखेगा।

धन्यवाद सहित

--कल्पना रामानी

Followers