खुशनुमा मौसम
लुभाने आ गया है।
क्यों न हम उत्सव मनाएँ।
मन के जालेसाफ कर लें।
स्नेह सितसद्भाव भर लें।
कलुष रावण को हराकर,
धवल नूतन साल कर लें।
प्रकृति पर नव
रूप,यौवन छा गया है।
क्यों न हम उत्सव मनाएँ।
दीप आतुर हो रहे हैं।
स्वर्ण लौ से जगमगाएँ।
तम हरें सारे जगत का,
इन्द्र धनुषी रंग छाएँ।
हर नया अंदाज़
मन को,भा गया है।
क्यों न हम उत्सव मनाएँ।
द्वार पर शोभित रंगोली,
और वंदन वार होंगे।
धन की देवी को मनाने,
सोलहों श्रंगार होंगे।
शुभम का संदेश
घर घर आ गया है,
क्यों न हम उत्सव मनाएँ।
---------कल्पना रामानी
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