Tuesday, 17 July 2012
कल हो न हो
आज सच है।
आज को हल कीजिये
कल हो न हो।
स्वप्न जो देखे, उन्हें आकार दें।
भाव मन में जो बहें, विस्तार दें।
बाँध मुट्ठी आज ही संकल्प की
कल्पनाओं को नया, आकार दें।
साधना से
सफल हर-पल कीजिये
कल हो न हो।
मन समंदर गूढ़ है मंथन करें
धूप हो या छाँव, बस चिंतन करें।
मूल-मुद्दों पर मनन हो आज ही
कर्म तप से ताप तन, कंचन करें।
चिर विजय की
चाह निश्छल कीजिये
कल हो न हो।
आज सोए आप तो, खो जाएँगे।
गुमशुदा इतिहास को, दुहराएँगे।
फिसल जाएगा समय, यह रेत सा
क्या हुआ जो बाद में, पछताएँगे।
मन तमस हर
आत्म उज्जवल कीजिये
कल हो न हो।
-कल्पना रामानी
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पुनः पधारिए
आप अपना अमूल्य समय देकर मेरे ब्लॉग पर आए यह मेरे लिए हर्षकारक है। मेरी रचना पसंद आने पर अगर आप दो शब्द टिप्पणी स्वरूप लिखेंगे तो अपने सद मित्रों को मन से जुड़ा हुआ महसूस करूँगी और आपकी उपस्थिति का आभास हमेशा मुझे ऊर्जावान बनाए रखेगा।
धन्यवाद सहित
--कल्पना रामानी
1 comment:
जागृति से,ज्योति जगमग कीजिये.....बहुत सुंदर गीत बधाई कल्पना जी
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