रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

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कल्पना रामानी

Friday, 2 November 2012

कहलाऊँ तेरा सपूत

















तुमने सब कुछ मुझे दे दिया
मुझपर हक़ है तेरा माँ!
कर्जदार हूँ पावन पय का
फर्ज़ शेष है मेरा माँ।

हर मंदिर था शीश झुकाया
हर मज़ार मन्नत मानी।
जननी, तेरे अन्तर्मन की
थाह भला किसने जानी।

पुत्रवती बनने करती
हर देवालय का फेरा माँ!
मुझको पाकर धन्य कहाई
धन्य भाव है तेरा माँ।


घंटों दिनों बरसों कैसे
मुझको गोद उठाया था।
अडिग,अथक, तुमने तपस्विनी
हर पल गले लगाया था।

मुझे सुलाते रात बीतती
होता सुस्त सवेरा माँ!
मेरे लिए सकल सुख त्यागे
त्याग अमर है तेरा माँ।

गुरु बनी सद्ज्ञान दिया
बन सखा सदा समझाया था।
सत्कर्मों के संस्कार का
पहला सबक सिखाया था।

मानवता का अपने हाथों
पहनाया था सेहरा माँ!
ज्योतिर्मय जीवन धन पाया
वंद्य समर्पण तेरा माँ।


क्या कुछ दूँ उपहार तुझे मैं
तेरे आगे तुच्छ सभी।
कर्जमुक्त ना हो पाऊँगा
अब क्या सौ जन्मों में भी।

कहलाऊँ तेरा सपूतहो
रंग स्नेह का गहरा माँ!
यही कामना मेरी बाकी
फर्ज़ यही है मेरा माँ।


-कल्पना रामानी

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--कल्पना रामानी

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