टुकुर टुकुर कर
ताके चिड़िया नन्हाँ उसका भूखा। |
खेतों खड़ा बिजूखा।
सोच रही वो, काश! यहाँ से
यह प्राणी हट जाए
झट से उड़कर, चोंच मारकर
कुछ अनाज ले आए।
पेट भरे चूज़े का खाकर
भोजन रूखा सूखा।
जाने वो इंसानी आदत
क्रूर कुटिलतम चालें।
पंछी को भी मार उदर के
गोदामों में डालें।
मूक प्राणियों के पीड़न का
मौका कब वो चूका।
नन्ही चिड़िया, नन्ही आशा
करे न अहित किसी का।
नहीं छीनना फितरत इसकी
और न संग्रह सीखा।
मानव में ही उसने पाया
फीका रंग लहू का।
- कल्पना रामानी
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