रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

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कल्पना रामानी

Sunday, 4 November 2012

नन्ही चिड़िया नन्ही आशा


टुकुर टुकुर कर ताके चिड़िया
नन्हाँ उसका भूखा।
कैसे जाए दाना लाने
खेतों खड़ा बिजूखा।
 
सोच रही वो, काश! यहाँ से
यह प्राणी हट जाए
झट से उड़कर, चोंच मारकर
कुछ अनाज ले आए।
पेट भरे चूज़े का खाकर
भोजन रूखा सूखा।
 
जाने वो इंसानी आदत
क्रूर कुटिलतम चालें।
पंछी को भी मार उदर के
गोदामों में डालें। 
मूक प्राणियों के पीड़न का
मौका कब वो चूका।
 
नन्ही चिड़िया, नन्ही आशा
करे न अहित किसी का।
नहीं छीनना फितरत इसकी
और न संग्रह सीखा।
मानव में ही उसने पाया
फीका रंग लहू का।

- कल्पना रामानी

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--कल्पना रामानी

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