खेतों ने ख़त लिखा
सूर्य को
भेजो नव किरणों का डोला।
हम तो हिमयुग झेल
चुके
अब ले जाओ कुहरा भर
झोला।
कुंद हुई सरसों की
धड़कन
पाले ने उसको है
पीटा
ज़िंदा है बस इसी आस
में
धूप मारने आए छींटा
धडक उठेंगी फिर से
साँसें
ज्यों मौसम बदलेगा
चोला।
देखो उस टपरी में
अम्मा
तन से तन को ताप
रही है
आधी उधड़ी ओढ़ रजाई
खींच-खींच कर नाप
रही है
जर्जर गात, कुहासा कहरी
वेध रहा बनकर
हथगोला
खोलो अपनी बंद
मुट्ठियाँ
दो हाथों से धूप
लुटाओ
शीत फाँकते जन जीवन
पर
करुणानिधि! करुणा बरसाओ
देव! छोड़ दो अब तो
होना
पल में माशा, पल में
तोला।
-कल्पना रामानी
1 comment:
सुन्दर और सार्थक सृजन
Post a Comment