रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

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कल्पना रामानी

Monday, 12 January 2015

खेतों ने ख़त लिखा सूर्य को


खेतों ने ख़त लिखा सूर्य को
भेजो नव किरणों का डोला।

हम तो हिमयुग झेल चुके
अब ले जाओ कुहरा भर
झोला।

कुंद हुई सरसों की धड़कन  
पाले ने उसको है पीटा
ज़िंदा है बस इसी आस में
धूप मारने आए छींटा

धडक उठेंगी फिर से साँसें 
ज्यों मौसम बदलेगा
चोला।

देखो उस टपरी में अम्मा
तन से तन को ताप रही है
आधी उधड़ी ओढ़ रजाई
खींच-खींच कर नाप रही है

जर्जर गात, कुहासा कहरी  
वेध रहा बनकर
हथगोला

खोलो अपनी बंद मुट्ठियाँ
दो हाथों से धूप लुटाओ
शीत फाँकते जन जीवन पर
करुणानिधि! करुणा बरसाओ

देव! छोड़ दो अब तो होना
पल में माशा, पल में
तोला। 

-कल्पना रामानी  

पुनः पधारिए


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धन्यवाद सहित

--कल्पना रामानी

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