रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

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कल्पना रामानी

Tuesday, 13 January 2015

दिनकर तेरी ज्योत बढ़े


दिन तिल तिल ज्यों बढ़ते जाते,
दिनकर तेरी ज्योत बढ़े

जाओ रानी गठरी बाँधो,
शीतल ऋतु को किया इशारा
नियम  पुरातन तेरा निस दिन,
सदियाँ गईं, नहीं तू हारा

शाम ढले छिप जाता है तू,
जाता फिर भोर पड़े

मौसम बदला सजीं पतंगें,
मुक्त गगन में लहराईं
तिल गुड़ की सौंधी मिठास,
रिश्तों में अपनापन लाई

युवा उमंगें बढ़ीं सौगुनी,
ज्यों ज्यों ऊपर डोर चढ़े

मकर प्रवेश दिवाकर तेरा,
भाग्य कर्म का है लेखा
फिर से नई इबारत लिख लो,
कहती है जीवन रेखा

मन आरोही बढ़ता चल,
हर कदम शिखर की ओर बढ़े

-कल्पना रामानी 

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--कल्पना रामानी

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