Monday, 16 January 2017
भरे पुण्य मेले
बदल सूर्य ने निज रथ-पथ
शुभ पाँव धरे धनु छोड़ मकर में।
भरे पुण्य-मेले, नदियों-तट
शंख फूँक, हर गाँव-शहर में।
मौसम ने करवट फिर बदली
सर्द हवा ने पाँव समेटे
जाग पड़े, भँवरे, कलियाँ, गुल
जो सोए थे शीत लपेटे
मन पाखी उड़ चला पतंगों-
संग डोर पर नीलांबर में।
बढ़े दिवस, घर लौटे पाखी
मिली पुनः चह-चह नीड़ों को
कुदरत बाँट रही अंजुरि-भर
धूप-सुखद, जग-जन-जीवों को
मान देख गुड़-तिल गर्वित हो
मना रहे उत्सव घर-घर में।
तृप्त हो रहे सूर्य अर्ध्य ले
मंत्र-मुग्ध है, डुबकी पावन
जाप रहे लब, नाम राम का
माँग रहे दिल, दिन मनभावन
हर इक घाट अमीरी-गुरबत
साथ छप रहे आज खबर में।
- कल्पना रामानी
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पुनः पधारिए
आप अपना अमूल्य समय देकर मेरे ब्लॉग पर आए यह मेरे लिए हर्षकारक है। मेरी रचना पसंद आने पर अगर आप दो शब्द टिप्पणी स्वरूप लिखेंगे तो अपने सद मित्रों को मन से जुड़ा हुआ महसूस करूँगी और आपकी उपस्थिति का आभास हमेशा मुझे ऊर्जावान बनाए रखेगा।
धन्यवाद सहित
--कल्पना रामानी
1 comment:
मकर संक्रांति की खुमारी में लिखी सुंदर कविता कल्पना जी।
मेरी पोस्ट का लिंक-
http://rakeshkirachanay.blogspot.in/2017/01/blog-post_12.html
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