फगुनाहट से जाग उठी है
जग में होली।
रंग पलाशों से लेकर जन
हुए रँगीले।
साथ फब रहे लाल हरे,
केसरिया पीले।
सूखे को मुँह चिढ़ा रहे रंग
गीले हँसकर,
भंग चढ़ा पकवान हो गए
और रसीले।
पिचकारी पर फिदा हो रही,
कोरी चोली।
मौसम बदला, नर्म हवा ने
पाँव पसारे।
खारे जल के ताल हो गए
मीठे सारे।
चूस-चूस कर आम कोकिला
सुर में कुहकी
आए मिलने गले ज़मी से
चाँद सितारे।
हुरियारों से होड़ ले रहे
ढम-ढम ढोली।
शहरों में डीजे गाँवों में
बजती पैंजन।
देश हो कि परदेस,पर्व की
एक वही धुन।
खेतों में सरसों खिलती
उद्यानों कलियाँ
कण कण में रस भर देता
सुखदाई फागुन।
आता संग धमाल शगुन की
भरकर झोली।
-कल्पना रामानी
4 comments:
achcha geet hai
बहुत सुंदर.
बहुत ही सुंदर रचना। होली की आपको बधाई।
बहुत सुन्दर नवगीत।
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