रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

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कल्पना रामानी

Saturday 28 February 2015

आ गया फागुन सखी

 
आ गया फागुन सखी
बहने लगी सुखकर
हवा।

गोद वसुधा की भरी,
नव पुष्प-पल्लव अंकुरन से।
प्रेम-रंग की गागरी 
ले आई ऋतु खिलते चमन से।

व्योम के पट पर सखी,
रंगों भरी छाई
घटा।

द्वार, देहरी, घर सजे,
आँगन रची हैं अल्पनाएँ।
पाँव पायल बाँध कर,
इठला रहीं नव यौवनाएँ।  

सोम-रस छलका सखी,
मद में भरी महकी
फिजा।

कोकिला की तान से,
धुन बाँसुरी की याद आई।
गोरियों के रूप में,
छवि राधिका की झिलमिलाई।

बाग हर मधुबन सखी,
हर गाँव वृन्दावन  
दिखा।

रंग की ये वादियाँ,
मन प्राण प्रमुदित कर रही हैं।
सब दिशाएँ झूमकर,
नूतन उमंगें भर रहीं हैं।

क्यों न हम भी ऐ सखी,
लें पर्व का जी भर
मज़ा।

-कल्पना रामानी  

3 comments:

दिगम्बर नासवा said...

फागुन के साथ बहुत ही सुन्दर नवगीत का आगमन ...
बहुत आभार ....

surenderpal vaidya said...

बहुत सुन्दर नवगीत।

कबीर कुटी - कमलेश कुमार दीवान said...

aa gaya fagun sakhi ....sundar geet hai
kalpna ji yadi aawaj me hota to or adhik prabhavkari hota ,koshish kare

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--कल्पना रामानी

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