रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

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कल्पना रामानी

Friday, 27 February 2015

घोलेगा जब रंग टेसुआ

वनज-पलाशों की तलाश में
दल-बल संग ऋतुराज
चला

गज़ब जुड़ी हुरियारी टोली
मिलकर सब खेलेंगे होली
काँव-काँव कागा की पहुँची
और कूक कोयल की बोली

घोलेगा जब रंग टेसुआ 
रोकेगा फिर कौन
भला।  

विहगों ने निज पर फैलाए
शामिल हुए चपल चौपाए
अमराई से दौड़े-दौड़े
अँबुआ भी आए बौराए

चलते-चलते ना जाने कब
दिन बीता दिनमान
ढला।  

सबने हर इक गाँव खँगाला
शहर शहर में डेरा डाला
और अंत में ढाक वनों की
पाक ज्वाल को ढूँढ निकाला

फिर तो खूब मनाया मंगल
इक दूजे को रंग  
मला।  

-कल्पना रामानी 

2 comments:

Unknown said...

Bhut hi sundar Line
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surenderpal vaidya said...

बहुत सुन्दर नवगीत।
होली की हार्दिक शुभकामनाएं।

पुनः पधारिए


आप अपना अमूल्य समय देकर मेरे ब्लॉग पर आए यह मेरे लिए हर्षकारक है। मेरी रचना पसंद आने पर अगर आप दो शब्द टिप्पणी स्वरूप लिखेंगे तो अपने सद मित्रों को मन से जुड़ा हुआ महसूस करूँगी और आपकी उपस्थिति का आभास हमेशा मुझे ऊर्जावान बनाए रखेगा।

धन्यवाद सहित

--कल्पना रामानी

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