वनज-पलाशों की तलाश
में
दल-बल संग ऋतुराज
चला
गज़ब जुड़ी हुरियारी
टोली
मिलकर सब खेलेंगे
होली
काँव-काँव कागा की
पहुँची
और कूक कोयल की
बोली
घोलेगा जब रंग
टेसुआ
रोकेगा फिर कौन
भला।
विहगों ने निज पर
फैलाए
शामिल हुए चपल
चौपाए
अमराई से दौड़े-दौड़े
अँबुआ भी आए बौराए
चलते-चलते ना जाने
कब
दिन बीता दिनमान
ढला।
सबने हर इक गाँव
खँगाला
शहर शहर में डेरा
डाला
और अंत में ढाक
वनों की
पाक ज्वाल को ढूँढ
निकाला
फिर तो खूब मनाया
मंगल
इक दूजे को रंग
मला।
-कल्पना रामानी
2 comments:
Bhut hi sundar Line
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बहुत सुन्दर नवगीत।
होली की हार्दिक शुभकामनाएं।
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