रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

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कल्पना रामानी

Wednesday, 17 December 2014

नूतन वर्ष तुम्हारा स्वागत

विगत विलीन,उदित है आगत
नूतन वर्ष तुम्हारा स्वागत।

मन बंजारा भटक रहा था
खोने का गम लिए निरंतर
जीवन मूल्य नए पाने को
ढूँढ रहा था नए जालघर।

कोहरा छंटा,सामने पाया
नूतन रूप सृष्टि का प्राकृत।

दुश्चक्रों से घिरे वक्त का
कुटिल रूप है धुँधलाया।
सदमित्रों की एक नई
सौगात नया मौसम लाया।

स्नेह-सिक्त रिश्तों की गरिमा
सहेजने को मन है उद्यत।

एकाकी-पन हुआ पुरातन
नई सहर सूरज के साथ।
जिसने हाथ बढ़ाया आगे
वही मित्र अपना है आज।

शांत ज्वार भाटा जीवन का
फिर जिजीविषा हुई है जाग्रत।
 
-कल्पना रामानी 

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1 comment:

Kailash Sharma said...

बहुत सार्थक और प्रवाहमयी रचना...बहुत सुन्दर

पुनः पधारिए


आप अपना अमूल्य समय देकर मेरे ब्लॉग पर आए यह मेरे लिए हर्षकारक है। मेरी रचना पसंद आने पर अगर आप दो शब्द टिप्पणी स्वरूप लिखेंगे तो अपने सद मित्रों को मन से जुड़ा हुआ महसूस करूँगी और आपकी उपस्थिति का आभास हमेशा मुझे ऊर्जावान बनाए रखेगा।

धन्यवाद सहित

--कल्पना रामानी

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