रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

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कल्पना रामानी

Tuesday 16 December 2014

जब धरा पर धूम से


जब धरा पर
धूम से ऋतु शीत आती है
दीन हीनों पर पसर आसन
जमाती है।

खूब भाते हैं खुले
डेरे इसे
प्यार से यह पाश में
उनको कसे
ज़ुल्म ने फरियाद उनकी
कब सुनी
जो किसी दूजे ठिकाने
यह बसे

बंद घर
देते नहीं हैं भाव जब इसको
बेबसों फुटपथियों पर ताव
खाती है

जब इसे संपन्नता
है ठेलती 
गर्म कमरों का कहर
यह झेलती  
खोजती फिर काँपते
कोने कहीं   
और अधनंगे तनों
से खेलती 

यातना के   
जो सताए उन यतीमों को,
हर बला बढ़कर सदा से ही
सताती है 

-कल्पना रामानी 

       

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--कल्पना रामानी

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