रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

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कल्पना रामानी

Friday, 19 December 2014

सुबह सुबह...

सुबह सुबह कानों में आकर
कहा किसी ने नमस्कार

अलसाई आँखों से देखा
सूर्य किरण की दिखी रेखा
नभ पर थे कुहरे के बादल,
नीचे भी कुहरा ही देखा

जान गई मैं, यह तो बदले,
मौसम का है चमत्कार

खग सोए थे आँखें मींचे
विहग नीड़ चूजों को भींचे
दिन की राह ताकते जन-जन,
धुआँ धुआँ थे गलियाँ कूचे

टुकड़ा धूप लपेटें तन पर,
सबको था बस इंतज़ार

रात बड़ी दिन छोटे होंगे
सर्द हवा के झोंके होंगे
संदूकों में मची खलबली,
गरम वस्त्र खुश होते होंगे

शीतल ऋतु के स्वागत को अब,

फिर से सब होंगे तैयार

-कल्पना रामानी 

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--कल्पना रामानी

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