धूप, सखी! है विनती मेरी
कुछ दिन जाकर शहर बिताना
पुत्र गया धन वहाँ कमाने,
जाकर उसका तन सहलाना।
वहाँ शीत पड़ती है भारी।
कोहरा करता चौकीदारी।
तुम सूरज की परम प्रिया
हो
रख लेगा वो बात
तुम्हारी।
दबे पाँव चुपचाप पहुँचकर
उसे प्रेम से गले लगाना।
रात, नींद जब आती होगी
साँकल शीत बजाती होगी
चुपके से दर-दीवारों पर
बर्फ हर्फ लिख जाती होगी।
पुनः गाँव की याद दिलाना।
मैं दिन गिन-गिन जिया करूँगी।
इंतज़ार भी किया करूँगी।
अगर शीत ने मुझे सताया
फटी रजाई सिया करूँगी।
लेकिन यदि हो कष्ट उसे तो
सखी! साथ में लेती आना।
-कल्पना रामानी
2 comments:
Your kavita reminds me Maithili Gupta's ' lines of 'Yashodhara'
Sakhi v mujhse kah kr jate
kahte to kya mujhko apni
pth badha hi pate...
Very nice.
I feel proud of you.
congrstes..
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