रचना चोरों की शामत

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कल्पना रामानी

Monday 22 September 2014

स्नेह सुधा बरसाओ मेघा


स्नेह सुधा बरसाओ मेघा
व्याकुल हुआ तरसता मन
 
रिश्तों की जो बेलें सूखीं
कर दो फिर से हरी भरी
मन आँगन में पड़ी दरारें
घन बरसो, हो जाय तरी
 
सिंचित हो जीवन की धरती
ले आओ ऐसा सावन
 
दूर दिलों से बसी बस्तियाँ
भाव शून्यता गहराई
सरस सुमन निष्प्राण हो गए
नागफनी ऐसी छाई
 
बूँद-बूँद में हो बहार सी
बरसाओ वो अपनापन
 
उपजाऊ हो मन की माटी
हर फुहार ऐसी लाओ
सौंधी खुशबू उड़े प्रेम की
मेघराज जल्दी आओ
 
पुनः पल्लवित हो जीवन में
शुष्क हुआ जो अंतरमन

-कल्पना रामानी

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--कल्पना रामानी

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