तुम पथिक, आए कहाँ से,
ठौर किस तुमको ठहरना?
इस शहर के रास्तों पर,
कुछ सँभलकर
पाँव धरना।
बात कल की है, यहाँ पर,
कत्ल जीवित वन हुआ था।
जड़ मशीनें जी उठी थीं,
और जड़ जीवन हुआ था।
देख थी हैरान कुदरत,
रात का दिन में
उतरना।
जो युगों से थे खड़े
वे पेड़ धरती पर पड़े थे।
उस कुटिल तूफान से, तुम
पूछना कैसे लड़े थे।
याद होगा हर दिशा को,
डालियों का वो
सिहरना।
घर बसे हैं अब जहाँ,
लाखों वहीं बेघर हुए थे।
बेरहम भूकम्प से सब,
बेवतन वनचर हुए थे।
खिलखिलाहट आज है, कल
था यहीं यहीं पर
अश्रु-झरना।
हो सके, उनको चढ़ाना,
कुछ सुमन संकल्प करके।
कुछ वचन देकर निभाना,
पूर्ण काया-कल्प करके।
याद में उनकी पथिक! तुम
एक वन आबाद
करना।
--------कल्पना रामानी
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