रचना चोरों की शामत

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कल्पना रामानी

Saturday, 13 September 2014

कितनी गर्वित भारत माता







बीत चुका वो कल दुखदाई
गुमी गुलामी की हर गाथा।
सिर हिन्दी का ताज सजाकर  
कितनी गर्वित, भारत-माता!
 
अंग लगाता हिन्दी को अब   
मुग्ध हिन्द का कोना कोना। 
दंग हो रही अंग्रेज़ी को
जलावतन निश्चित है होना।
 
लाख बिछे हों जाल, काटना
देवनागरी को है आता।
 
हिन्दी के ही पद कमलों से
पावन, भारत की धरती है।
प्रांत-प्रांत के अन्तर्मन को
यह सौम्या सुरभित करती है।
 
शीश झुका करते हैं तत्क्षण
जब कोई जन-गण-मन गाता।
 
दिव्य देवदत्ता यह वाणी  
जन-जन के हिय में रहती है।
अगर दमन के सुर बोलें तो  
सुरबाला कब ये सहती है। 
 
सजग रहें हम सतत यही बस
हिन्दी-दिवस जताने आता!

-कल्पना रामानी

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--कल्पना रामानी

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