मिली हमें स्वतन्त्रता, अनंत शीश दान से।
निशान तीन रंग का, तना रहे गुमान से।
प्रतीक रंग केसरी, जुनून, जोश, क्रांति का,
दिखा रहा सुमार्ग है, सफ़ेद विश्व शांति का।
रुको न चक्र बोलता, सिखा रहा हमें हरा,
सुखी समृद्ध जीव हों, हरी भरी वसुंधरा।
करें प्रणाम साथियों, झुकाएँ शीश, मान से।
निशान तीन रंग का, तना रहे गुमान से।
सदा स्वदेशी बोलियाँ, सगर्व आप बोलिए।
गुलाम भाष्य-भाव से, जिये तो मीत, क्या जिये।
कठोरता से काट दें, विदेशियों के जाल को।
न आँधियाँ बुझा सकें, स्वतन्त्रता मशाल को।
कि हिन्द-पुत्र हिन्दी को, जुबाँ पे लाएँ शान से।
निशान तीन रंग का, तना रहे गुमान से।
हटाएँ शूल द्वेष के, बसें गुलों की बस्तियाँ।
विमोह, शोक, रोग की, रहें न शेष अस्थियाँ।
सचेतना, सुभावना, सुकामना अभंग हो।
समेकता, विवेकता, उदारता का रंग हो।
बनी रहे मनुष्यता, सदैव प्रेम दान से।
निशान तीन रंग का तना रहे गुमान से।
शहीद तो चले गए, जिहाद रंग ओढ़ के।
कि जागिए मनीषियों, विलास रंग छोड़ के।
कुनीतियाँ उखाड़के, विकास मंत्र को वरें।
सुनीति, भक्ति, शक्ति से, सजीव तंत्र को करें।
सुरक्ष देश आज हो, सशक्त संविधान से।
निशान तीन रंग का, तना रहे गुमान से।
"हौसलों के पंख" से
-कल्पना रामानी
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