तनहाई, तुम इस जीवन में
बिना बुलाए आई क्यों?
मन तो मन के साथ-साथ था
तुमने सेंध लगाई क्यों?
क्या तुम इतना नहीं जानती
साथ सुहानी कुदरत है।
खिलती कलियाँ, हँसता गुलशन
फूल पात हैं, जल कण हैं।
महक हवा की साथ साथ थी
तूफाँ बनकर आई क्यों?
किसने कहा अकेले हैं हम।
कैसे तुमने मान लिया?
ढलता सूरज, झुकता अम्बर
नौका सागर सब कुछ था।
अंतर्घट यह भरा हुआ था
अगम रिक्तता लाई क्यों?
वापस जाओ, इस जीवन में
तेरी कोई जगह नहीं।
सब कुछ छोड़, तुझे अपनाऊँ
दिखती कोई वजह नहीं।
स्वर्ग सृष्टि का छोड़ तुम्हारी
बनूँ आज परछाईं क्यों?
-कल्पना रामानी
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