रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

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कल्पना रामानी

Friday, 9 August 2013

विजय का दीप

विहँस रहा है बुत रावण 
दस शीश उठाए 
सच्चा जो इंसान, वेधने 
कदम बढ़ा दे।
 
जिसने केवल सत्कर्मों का
वरण किया हो। 
कभी न छल से, बल से बाला
हरण किया हो।
लाज बचाई हो अबलाओं
की, लुटने से
सदाचरण का व्रत, वांछित
आमरण लिया हो।
अजय धनुष पर बाण,वही इस
बार चढ़ा दे।
 
जिसने कभी न दुष्कर्मों के
महल बनाए।
दफनाकर आदर्श, स्वार्थ के
साज सजाए।
जिसने घर आबाद किए हों
सहज स्नेह से,
सिर्फ उसी को हक है, रावण
मार गिराए।
करे आज कल्याण, वेधकर 
आग लगा दे।
 
सर्व हितों की रक्षा में जो
रत हो योगी।
किया सुखों का त्याग,मनस को
रखा निरोगी।
लूटपाट से भरी न अपनी
कभी तिजोरी
मानवता को मेट, बना ना
धन का लोभी।
बन कलियुग का राम, विजय का
दीप जला दे।

-कल्पना रामानी

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--कल्पना रामानी

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