खुलीं पलकें भोर की पग
बढ़ चले लय में हमारे।
हरित कुसुमित क्यारियाँ हैं
इस किनारे-उस किनारे।
अरुणिमा
प्राची में छाई
धूप
शबनम से नहाई।चाँद तारे कह गए हम
जा रहे हैं, दो विदाई।
कान में कहतीं हवाएँ
नज़र कर लो सब नज़ारे।
खिलीं कलियाँ हुई आहट
तितलियों की सुगबुगाहट।
पुष्प पल्लव औ लताओं
के लबों पर मुस्कुराहट।
सृष्टि के साथी सभी हैं
सजग स्वागत में हमारे।
बाग में बच्चों की तानें
विहग वृंदों की उड़ानें।
वृद्ध भी हर्षित हृदय हैं
साथ सब जाने अजाने।
मधुर बेला यह सुबह की
प्यार से सबको निहारे।
भ्रमण-पथ लंबा अकेला
लिपटकर कदमों से खेला।
कह रहा है गति बढ़ा लो
प्राणवायु का है रेला।
हर दिशा संगीतमय है
मुग्ध मौसम के इशारे।
-कल्पना रामानी
2 comments:
बाग में बच्चों की तानें,
विहग वृंदों की उड़ानें।
वृद्ध भी हर्षित हृदय हैं,
साथ सब जाने अजाने।
बहुत सुन्दर नवगीत आदरणीया
अति उत्तम गीत
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