रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

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कल्पना रामानी

Saturday 10 August 2013

खुलीं पलकें भोर की



खुलीं पलकें भोर की पग
बढ़ चले  लय में हमारे।
हरित कुसुमित क्यारियाँ हैं
इस किनारे-उस किनारे।

अरुणिमा प्राची में छाई
धूप शबनम से नहाई।
चाँद तारे कह गए हम
जा रहे हैं, दो विदाई।

कान में कहतीं हवाएँ
नज़र कर लो सब नज़ारे।

खिलीं कलियाँ हुई आहट
तितलियों की सुगबुगाहट।
पुष्प पल्लव औ लताओं
के लबों पर मुस्कुराहट।

सृष्टि के साथी सभी हैं
सजग स्वागत में हमारे।

बाग में बच्चों की तानें
विहग वृंदों की उड़ानें।
वृद्ध भी हर्षित हृदय हैं
साथ सब जाने अजाने।

मधुर बेला यह सुबह की
प्यार से सबको निहारे।

भ्रमण-पथ लंबा अकेला
लिपटकर कदमों से खेला।
कह रहा है गति बढ़ा लो
प्राणवायु का है रेला।

हर दिशा संगीतमय है
मुग्ध मौसम के इशारे।

-कल्पना रामानी 

2 comments:

Vandana Ramasingh said...

बाग में बच्चों की तानें,
विहग वृंदों की उड़ानें।
वृद्ध भी हर्षित हृदय हैं,
साथ सब जाने अजाने।

बहुत सुन्दर नवगीत आदरणीया

Mahendra Narayan said...

अति उत्तम गीत

पुनः पधारिए


आप अपना अमूल्य समय देकर मेरे ब्लॉग पर आए यह मेरे लिए हर्षकारक है। मेरी रचना पसंद आने पर अगर आप दो शब्द टिप्पणी स्वरूप लिखेंगे तो अपने सद मित्रों को मन से जुड़ा हुआ महसूस करूँगी और आपकी उपस्थिति का आभास हमेशा मुझे ऊर्जावान बनाए रखेगा।

धन्यवाद सहित

--कल्पना रामानी

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