रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

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कल्पना रामानी

Thursday, 15 August 2013

हस्ताक्षर हिन्दी के













कोटि कोटि जन के मुख से
गूँजें स्वर हिन्दी के।
विश्व फ़लक पर अमिट बनें
हस्ताक्षर हिन्दी के।
 
जन जन हाथ बढ़ाए आगे।
हिन्दी का हक़, हक़ से माँगे।
हिन्दी की जय घर घर छाए।
ज़ुबाँ-ज़ुबाँ को हिन्दी भाए।
 
विजय पताका पर लिख दें
स्वर्णाक्षर हिन्दी के।
 
हिन्दी सुगम सुरों की वाणी।
सुखदाई है जन कल्याणी।
रस, समास, छंदों की सरिता।
भाव अलंकृत सार गर्भिता।
 
शिलालेख स्थापित कर दें
लिखकर हिन्दी के।
 
हिन्दी का इतिहास पुराना।
सकल विश्व ने भी यह माना।
शब्द शब्द में छिपा हुआ है
संस्कृति का अनमोल खज़ाना।
 
पुनः काव्य के ग्रंथ बनाएँ
रचकर हिन्दी के।
 
रानी है, यह राज करेगी।
भारत माँ का ताज बनेगी।
निर्झरिणी, साहित्य स्रोत की
प्रगति मार्ग की ओर बहेगी।
 
सादर नमन करें चरणों में
झुककर हिन्दी के।
  
-कल्पना रामानी

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--कल्पना रामानी

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