रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

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कल्पना रामानी

Monday 21 January 2013

आज की नारी


 
सदियों से अबला कहलाई
आज सबल वो नारी है
काट चली है सभी बेड़ियाँ
उड़ने की तैयारी है।

हक़ अपना छीना है जग से
जिसकी थी हकदार सदा
कठपुतली वो आज नहीं है
जय कर ली है हर विपदा।
गृहशोभा का तमगा तोड़ा
गृह स्तंभ बलधारी है।

परदे की परतों को चीरा
चाँद पे पैर पसारे हैं
मुट्ठी में आकाश थामकर
बस में किए सितारे हैं।
पायल कंगन साड़ी छूटी
जींस टॉप की बारी है।

प्रेम,त्याग, बलिदान,समर्पण
कुदरत से वर पाए थे।
पर समाज ने कदम कदम पर
ज़ुल्म उसी पर ढाए थे।
अब सिंहनी साहस की है वो
नव  दुर्गा  अवतारी  है।
 
नहीं द्रौपदी, और सीता
ना ही अब वो सती रही।
किस्मत अपनी अपने हाथों
आज की नारी ने लिख ली।
लपटों में कल खाक हुई थी
बनी आज चिंगारी है।

-कल्पना रामानी

2 comments:

Sheshnath Prasad said...

पर नारी में था प्रेमोपम, जो नारीत्व अनल शशि- शीतल; क्या है हुआ नहीं क्षत भोथर, प्रगति-वेग में अदिश अशीतल.

Sheshnath Prasad said...

पर नारी में था प्रेमोपम, जो नारीत्व अनल शशि- शीतल; क्या है हुआ नहीं क्षत भोथर, प्रगति-वेग में अदिश अशीतल.

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--कल्पना रामानी

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