घटना बढ़ना दिन का दिनकर
नियम सदा से कुदरत का।
नई सुबह की नव किरणों संग
राहत का संदेश सुना।
परिवर्तन की परिभाषाएँ
जीना हमें सिखाएँगी।
लहू शीत ने जमा दिया था
समय-धार पिघलाएगी।
कोहरे के काले बादल पर
धूप लगाएगी तड़का।
उडी पतंगें, कटी पतंगें
देख हृदय में हूक उठी।
मिला किसी को नया आसमां
और किसी की डोर कटी।
हार घटेगी, जीत बढ़ेगी
यही सत्य इस जीवन का।
बिलख रहा बचपन रोटी को
उत्सव कैसे मने वहाँ?
कड़वाहट भर दी रिश्तों ने
रस मिठास का घुले कहाँ?
किस्मत की कट गईं पतंगें
मेहनत की हुई डोर खफा।
- कल्पना रामानी
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