
आज सबल वो नारी है
काट चली है सभी बेड़ियाँ
उड़ने की तैयारी है।
हक़ अपना छीना है जग से
जिसकी थी हकदार सदाकठपुतली वो आज नहीं है
जय कर ली है हर विपदा।
गृहशोभा का तमगा तोड़ा
गृह स्तंभ बलधारी है।
परदे की परतों को चीरा
चाँद पे पैर पसारे हैंमुट्ठी में आकाश थामकर
बस में किए सितारे हैं।
पायल कंगन साड़ी छूटी
जींस टॉप की बारी है।
प्रेम,त्याग, बलिदान,समर्पण
कुदरत से वर पाए थे। पर समाज ने कदम कदम पर
ज़ुल्म उसी पर ढाए थे।
अब सिंहनी साहस की है वो
नव दुर्गा अवतारी है।
नहीं द्रौपदी, और न सीता
ना ही अब वो सती रही।
किस्मत अपनी अपने हाथों
आज की नारी ने लिख ली।
लपटों में कल खाक हुई थी
बनी आज चिंगारी है।
-कल्पना रामानी
2 comments:
पर नारी में था प्रेमोपम, जो नारीत्व अनल शशि- शीतल; क्या है हुआ नहीं क्षत भोथर, प्रगति-वेग में अदिश अशीतल.
पर नारी में था प्रेमोपम, जो नारीत्व अनल शशि- शीतल; क्या है हुआ नहीं क्षत भोथर, प्रगति-वेग में अदिश अशीतल.
Post a Comment