रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

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कल्पना रामानी

Thursday, 3 January 2013

नए साल के स्वागत में




 












नए साल के स्वागत में फिर,
फिर से सौ सौ द्वार खुले।  
 
आया शीत चुनरिया ओढ़े,
कोहरे के आलिंगन में।
देश विदेश बंधे हैं सारे,
एक जगह इक बंधन में।
स्नेह ज्योत के दीपक लेकर,
निकल पड़े सब रात ढले।
 
शोर शराबे की महफिल में,
डूब गई है दिशा दिशा।
सूरज कैसे मुंह दिखलाए,
जीती उससे आज निशा।
बना रहे उत्साह हमेशा,
यही दीप हर रात जले।
 
स्वहित भूलकर,परहित खातिर,
इक संकल्प नया सा हो।
घृष्ट भाव के हटें आवरण।
परदा एक हया का हो।
विपदाओं पर विजय साधने,
साथ कदम इस साल चलें।    

-----कल्पना रामानी

1 comment:

Unknown said...

बहुत ही सुन्दर रचना....

पुनः पधारिए


आप अपना अमूल्य समय देकर मेरे ब्लॉग पर आए यह मेरे लिए हर्षकारक है। मेरी रचना पसंद आने पर अगर आप दो शब्द टिप्पणी स्वरूप लिखेंगे तो अपने सद मित्रों को मन से जुड़ा हुआ महसूस करूँगी और आपकी उपस्थिति का आभास हमेशा मुझे ऊर्जावान बनाए रखेगा।

धन्यवाद सहित

--कल्पना रामानी

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