नए साल के स्वागत में फिर,
फिर से सौ सौ द्वार खुले।
आया शीत चुनरिया ओढ़े,
कोहरे के आलिंगन में।
देश विदेश बंधे हैं सारे,
एक जगह इक बंधन में।
स्नेह ज्योत के दीपक लेकर,
निकल पड़े सब रात ढले।
शोर शराबे की महफिल में,
डूब गई है दिशा दिशा।
सूरज कैसे मुंह दिखलाए,
जीती उससे आज निशा।
बना रहे उत्साह हमेशा,
यही दीप हर रात जले।
स्वहित भूलकर,परहित खातिर,
इक संकल्प नया सा हो।
घृष्ट भाव के हटें आवरण।
परदा एक हया का हो।
विपदाओं पर विजय साधने,
साथ कदम इस साल चलें।
-----कल्पना रामानी
1 comment:
बहुत ही सुन्दर रचना....
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