विदा हुए मंगलमय
मेघा,
शीतल ऋतु उपहार
दे गए।शरद परी ने पलकें खोलीं।
हर्षित हवा बनी हमजोली।
हुआ पारदर्शी नीलाम्बर,
दूर दिखी विहगों की टोली।
जीव जगत के हृदय उमड़ते,
सपनों को आकार दे गए।
फिर गूँजा चिड़ियों का कलरव,
दृष्ट हुआ वसुधा का वैभव।
फूलों पर हुईं फिदा तितलियाँ,
तृषामुक्त तरुवर,तृण, पल्लव।
सरु, सरिता, सागर को समुचित,
कलकल जल की धार दे गए।
हँसे खेत खलिहान खिल उठे।
कर्मक्षेत्र में लोग फिर जुटे।
हुआ जोश द्विगुणित कृषकों का,
सुखद बीज बोने पुनः डटे।
बदहाली की बाढ़ बांधकर,
हरियाली के हार दे गए।
प्लावित हुआ कलुष हर मन का।
मलिन स्वेद सूखा हर तन का।
बंद हुए अध्याय अनमने,
खुला पृष्ठ सिंचित जीवन का।
अरुण भोर,हुई साँझ सुरमई,
सतरंगी संसार दे गए।
----------कल्पना रामानी
4 comments:
विदा हुए मंगलमय मेघा
शीतल ऋतु उपहार दे गए ।
बहुत सुन्दर नवगीत के लिए बधाई ।
सुंदर
बहुत खूब.
प्रिय मित्रों, आप सबका यहाँ तक आने और प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए हार्दिक आभार
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