रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

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कल्पना रामानी

Saturday 30 April 2016

जुड़े हुए फुटपाथों से

 जिनसे जुड़तीं कई इमारतें
जुड़े हुए फुटपाथों से

ये मजदूर निरे मतवाले
यहाँ वहाँ हैं ड़ेरा डाले
कुछ रुपयों की मिले दिहाड़ी
जुट जाते हैं चंद निवाले

दिन भर बोझ तगारी ढोते
चैन जुड़ा है रातों से  

क्या किस्मत दीनों ने पाई
गिरें पड़ें तो राम दुहाई
साँसें बंधक, मरते दम तक
दौलत से तुलती भरपाई

शोषण से शोणित का रिश्ता
गठबंधन है घातों से

जंग लगे शासन के पुर्जे
अंधा है कानून नकारा
न्याय दलीलों के दर दाखिल
बेकसूर हर बाज़ी हारा

फिट करते सब अपनी गोटी
फुरसत किसे बिसातों से

-कल्पना रामानी 

1 comment:

Garg chhaganlal blogs said...

'सांसे बंधक ' युगों से कौन होगा जिम्मेदार ।
इनकी दुर्गति मे बसती भारत की तेज रफ्तार ।
मरें जियें रिश्ता नहीं मानव सम केवल कर्मकार।
शोषक वर्ग पनपे हर पल नही शासन जिम्मेदार ।।
छगन लाल गर्ग ।
सामयिक दर्द झेलती अभिव्यक्ति सुंदर ।बधाई कल्पना जी।

पुनः पधारिए


आप अपना अमूल्य समय देकर मेरे ब्लॉग पर आए यह मेरे लिए हर्षकारक है। मेरी रचना पसंद आने पर अगर आप दो शब्द टिप्पणी स्वरूप लिखेंगे तो अपने सद मित्रों को मन से जुड़ा हुआ महसूस करूँगी और आपकी उपस्थिति का आभास हमेशा मुझे ऊर्जावान बनाए रखेगा।

धन्यवाद सहित

--कल्पना रामानी

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