बिटिया देख रही वो सपना
जो न सपन में भी
था सोचा
देख अकेली बुलबुल प्यारी
बिछा रहा था जाल शिकारी
पर बुलबुल थी बड़ी सयानी
खोली अपनी ज्ञान पिटारी
चुपके जाकर बहेलिए
को
चोंच मारकर जी
भर नोचा।
उस किसान घर कर्ज़ पुराने
आए थे हल-बैल उठाने
कुछ निश्चय मन ही मन
करके
बुने कृषक ने ताने-बाने
बल शाली बाहों ने बढ़कर
लेनदार का गला
दबोचा।
सिखा गया बिटिया को सपना
कैसे रक्षण करना अपना
संकल्पों के हवन कुंड
में
अब उसको भी होगा तपना
खींचेगी वो खाल खलों
की
अगर किसी ने उसे
खरोंचा।
-कल्पना रामानी
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