रचना चोरों की शामत

मेरे बारे में

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कल्पना रामानी

Wednesday 21 January 2015

लौट आए दिन बसंती

आसमाँ से धुंध के पट खोलकर फिर
लौट आए दिन बसंती
ख्वाब वाले

कन्दरा से कोकिला का
मौन बोला
कर बढ़ा अमराइयों ने
द्वार खोला
आम्र-बौरों ने धरा के
चरण चूमें
गा उठी ऋतु, पीतवर्णी
ओढ़ चोला

क्रूर मौसम के किले को तोड़कर फिर
मुस्कुराए दिन सुनहरी
आब वाले

बाग की तनहाइयाँ फिर
गुनगुनाईं
भँवरों ने कलिकाओं से
आँखें लड़ाईं  
रस भरे ऋतुराज की खातिर
गुलों ने
अल्पनाएँ, रंग-खुशबू
से सजाईं

भूल बीता काल हिम्मत जोड़कर फिर
जगमगाए दिन दिलों की
ताब वाले
--कल्पना रामानी  

1 comment:

कविता रावत said...

बहुत सुन्दर बासंती गीत
आया वसंत झूम के ..

पुनः पधारिए


आप अपना अमूल्य समय देकर मेरे ब्लॉग पर आए यह मेरे लिए हर्षकारक है। मेरी रचना पसंद आने पर अगर आप दो शब्द टिप्पणी स्वरूप लिखेंगे तो अपने सद मित्रों को मन से जुड़ा हुआ महसूस करूँगी और आपकी उपस्थिति का आभास हमेशा मुझे ऊर्जावान बनाए रखेगा।

धन्यवाद सहित

--कल्पना रामानी

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